पूलासर का इतिहास

पूलासर का इतिहास

विक्रम सम्वत 1444 में बैसाख सुद 3 अक्षय तीज के दिन सिहं लग्न में गगांराम व रेड़ाराम ने उड़सर से आकर पूलासर की नींव दी थी जांगल प्रदेष के सारण पटी के अन्तर्गत यह भूमि भाड़ंग कि राजधानी के अधीन गिरासिया राज था उस समय कालूराम के पुत्र मालाराम सारण जाट नख भाटि ने अपने पुत्र के नामकरण सस्कांर पर यह भूमि 12 कोस परिधि की अपने दादा को दान स्वरूप दी थी उस कारण ही इस गांव का नाम पूलासर पूला के नाम पर रखा था। काहल पाणिडया पारीक ब्राहम्ण गगांराम रेड़ाराम ने इस गांव को बसाया था। भोजराज पाणिडया के पुत्र गगांराम , रेड़ाराम का बसाया हुआ यह गांव है। मालाराम सारण ने भूमि दान मे दी थी उसके बाद यहां जाट जाति आबाद नही हुर्इ और पूला सारण यहां से फोगा गांव में रहा फोगा के बास भी पूला के बेटो के बसाने का इतिहास बताया जाता है। पूला सारण का अनितम समय वहीं बीता और वही पर पूला का थड़ा बताया गया है। जो पुर्वजो की जुबानी व सारण रावों के बताये मुताबिक भी सही बताया जाता है। इस बात की जानकारी सारण राव की बही से या चूरू मण्डल के इतिहास से भी होती है कि भाड़ंग में पूलासारण व पाण्डू गोदारा का झगड़ा होना बताया गया है। पूला सारण का श्मषान पालणजी के नाम पर रखा गया है जो यह बात राव सीताराम की बही से प्रमाणित होती है। कि पालण जोहड़ व श्मषान में उनकी समाधि है। उसका समय भी लगभग 400 वर्ष पुर्व अनुमानित किया जाता है। भोजराज जी कि पतिन का नाम देवकी था गगांराम जी कि पतिन का नाम पानी था रेड़ाराम जी कि पतिन का नाम माया था गगांराम के वषंजो की 6 ऐल थी सांवतराम , भागुराम ,-हरिराम, प्रभुराम- उदाराम- जैसाराम रेड़ाराम के वषंजो की 6 ऐल थी रेखाराम- सर्मथराम – गोविन्दराम -गोमदराम -घड़सीराम -जुगताराम तेरहवी ऐल बनियार ( महाजनो) की थी जो यहां से उठकर सरदारषहर के बसने पर वहां चले गऐ । गगांराम की 6 ऐलो में से दो सांवतराम व भागुराम उगाजी बास में थे । हरिराम, प्रभुराम- उदाराम- जैसाराम ये चार भदाजी बास बास में थे इस प्रकार उगाजी बास व भदाजी बास में गगांराम जी की ऐल है। रेड़ाराम की 6 ऐले नाभाजी बास में है। इसिलिए नाभाजी बास में रेड़ाराम के वषंज है ।। भानजे जितने भी बसे है। वे अपने नाना व मामा की ऐल में बताऐ जाते है। उगाराम जी की पतिन का नाम रामी व माही था उगाराम जी के नाम को वर्तमान मे दादोजी के नाम से भी जाना जाता है। जो पूलासर गावं के ग्राम देवता के रूप मे पुजे जाते है। इनका दो बार विवाह हुआ था। नाभाराम जी की पतिन का नाम नथी था । भादाराम जी की पतिन नाम सांरा था। ग्राम पूलासर उतर चौड़ार्इ – अक्षांष 2825 पूर्व लम्बार्इ रेखाषं 7437 माघव मास उजाल पखं तृतीया शनिवार । चवदे सो चवालवे-गांगा-रेड़ा दी नगर की खात
   गाॅव पुलासर की ऐतिहासिक भुमि की दास्तान बहुत ही प्राचीन है माना जाता है कि यह भू भाग त्रेता युग में श्री रामचन्द्र जी के अघीनस्थ रहा था एवं द्वापर युग में पाण्डवों के गुरू द्रोणाचार्य के धोड़े चरने के स्थान हुआ करता था तथा उनके अधीन रहा था इस धरा को पहले जांगल प्रदेष व कुरू जांगल प्रदेष भी कहा जाता था इस भू भाग सीमा राजस्थान के दस जिले झंुझनु, सीकर, चूरू,बीकानेर,गंगानगर,नागौर,जोधपुर,बाड़मेर,जेसलमेर,पाली (जांगल प्रदेष का विस्तार समस्त उतरी पष्चिमी,उतर पूर्वी व व पष्चिमी राजस्थान तक था इस दस जिलो के अलावा हरियाणा के हिसार,भिवानी,महेन्द्रगढ व पंजाब राज्य के अबोहर तक का क्षेत्र इसकी सीमा रही है। सन् 1305 ईवी में यहा पर चैहानो का सम्पूर्ण जांगल प्रदेष पर अधिपत्य रहा विक्रमी शंवत 1000 चैहानों का आधिपत्य कमजोर पड़ गया जिस कारण यहां पर गिरासिया सारणों का राज स्थापित हुवा जो सात जाट जनपदो मे ंबंटा हुआ था यह भू भाग सारण जाट पटी के अन्तर्गत आता था इस क्षेत्र की राजधानी का मुख्य केन्द्र भाड़ग रहा था तथा इस क्षेत्र की सीमा उतर बूचावास दक्षिण बाधनू पूर्व मे सिसिला पष्चिम में सोवाई तक का स्थान राजस्थन इहिहास के अनुसार बताय गया है। कर्नल टाड ने इसन पटिटयों का उलेख किय है सारण जाट पटी के अन्तर्गत 300 ग्रांम थे जिन पर सारण जाट का प्रभुत्व रहा था सारणें की बिरल मिलने के कारण ही पल्लू से उड़सर रहने वाले दादा का कालूराम पुत्र मालाराम जिसे माल कहा जाता था। उडसर जाकर अपने पुत्र का नाम रखवाने के लिये दादा को बुलाया था पुत्र के नामकरण संस्कार के उपलक्ष्य में भूमि दान दी थी जिससे ब्राहम्ण दादा ने खुष होकर मालाराम के पुत्र पुलाराम पर इस गांव की नीव देकर पूला के नाम पर पूलासर रखा थागांव कीप्रथम नीव देन व स्थापना करने में गंगाराम व रेड़ाराम को हमेषा याद किया जाता रहेगा। ग्राम पूलासर अक्षांष 28/25 रेखांष 74/37 पर बसा हुआ है। 

ग्रांम देवता दादोजी महाराज
पहले यहां ग्रांम देवता उगोजी महाराज का स्माधि स्थल जहां पर एक खेजड़ी का वृक्ष हुआ करता था। कालांतर में वहा मनिदर बना दिया गया। आज यहां पर जन सहयोग व रामेष्वर प्रसाद पांडिया के आर्थिक सोजन्य से मदिंर का जीर्णोद्वार कर दिया गया है। दादोजी महाराज की खड़ाउ चरण पादुका पुजी जाती है। खड़ाउ पर दूध चढाया जाता है यह मंदिर गांव की आजादी का प्रतिक माना जाता है। यहां के लोग जब बाहर कमाने जाते है तो दादोजी महाराज के चरण चिन्हों पर माथा टेककर जाते है । विवाह के बाद वर कन्या की प्रथम धोक यहीं पर लगती है। यहां कि बहुएं दादोजी के मदिंर के आगे से घुंघट निकालकर निकलती है। दादोजी के नाम से दूध व जल मिश्रित कार भी गांव के चारों ओर लगार्इ जाती है। जिससे गांव में किसी प्रकार की आधी-व्याधि नही रहे।